बेहतर है कर लो थोड़ा खुद को अलग जमाने से ।
बेमतलब के ख्वाब से पनपे चाहत के अफ़साने से ।
सदियों से हम मिले नहीं माना कोई बात न की ,
छोड़ सब कुछ मिलते हैं फिर आज किसी बहाने से ।
रात सुना दम निकला है उस बदनाम आशिक़ का,
चलो किसी को मिली रिहाई उस पागल दीवाने से।
बेमतलब के ख्वाब से पनपे चाहत के अफ़साने से ।
सदियों से हम मिले नहीं माना कोई बात न की ,
छोड़ सब कुछ मिलते हैं फिर आज किसी बहाने से ।
रात सुना दम निकला है उस बदनाम आशिक़ का,
चलो किसी को मिली रिहाई उस पागल दीवाने से।