मंगलवार, 10 जून 2014

बेहतर है कर लो थोड़ा खुद को अलग जमाने से ।
बेमतलब के ख्वाब से पनपे चाहत के अफ़साने से ।

सदियों से हम मिले नहीं  माना कोई बात न की ,
छोड़ सब कुछ मिलते हैं फिर आज किसी बहाने से ।

रात सुना दम निकला है उस बदनाम आशिक़ का,
चलो किसी को मिली रिहाई उस पागल दीवाने से।

रविवार, 8 जून 2014

वो न होगा तो क्या कमी होगी ।
बस अधूरी सी जिंदगी होगी ।

फ़ीका होगा रंग खुर्शीद का ,
सदमे मे चाँदनी होगी ।

उतरा रहेगा फूलों का रंग ,
गुलशन मे बेक़सी होगी ॥ 
जाने दे जो चला गया अँधेरा है ।
मत ढूंढ उसमे अब क्या तेरा है ।

ठहरा क्यूँ है साँझ के डर से ,
कदम बढ़ा उस पार सवेरा है ।

क्या है गम जो न पा सका उसे ,
है और इक जहान जहाँ वो तेरा है ।

तू अकेला परेशान नही दुनिया मैं,
हैं सभी जिन्हें आफत ने घेरा है ।

समेत के गम कल का इस्तक़बाल कर ,
जो आग़े है सब कुछ सुनेहरा है । 

शनिवार, 7 जून 2014

अज़ीम रिश्ते चन्द बातों पे बिखर आये हैं ।
दरारें भला कब उभरने से पहले नजर आये हैं ।

निकले तो हम सबके साथ थे जिंदगी मे ,
मगर लौट के क्यूँ तन्हा से  घर आये हैं  ।


शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

अब कहीं और नहीं जाना है ,
तुमसे रोशन मेरा जमाना  है ।

तुम कहो कैसे मुमकिन हो ,
तुमको अपना मुझे बनाना है ।

तुम निगाहें न मुझसे फेरा करो ,
इनमें  मेरा इक आशियाना है ।

जिंदगी की आंखिरी मंजिल है यही,
परवाज़ यहीं जीना है मर जाना है ।


जब आ ही गए हो दिल मैं ।
खुशामदीद है महफ़िल मैं ।

लुत्फ़ है तेरे संग रास्ते का,
क्या रखा है भला मंजिल मैं ।

कह दूँ सब कुछ तुझे या चुप रहूँ ,
दिल आके फँसा है मुश्किल मैं । 

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

लोग पास आ-आके दूर जाते रहे ।
बेवज़ह हम खुद को जलाते रहे ।

हाल मेरा वो कभी समझ न  सके ,
खामखाँ हम जुबां हिलाते रहे ।

डूबते रहे गम में  शामो सहर ,
पैर आंखरी दम तक मगर चलाते रहे ।

गम समेटा है खुद के अंदर बेशक ,
फिर भी जिस से मिले उसे हँसाते रहे ।